
वो राजधानी
खगिन्द्रा
खुसी
मे अन्जानी थी
जव पेहेलेवार आपके पास अरहिथी
मुझे डर था
मे खोजाउँगी आपके तनमे
सलवलाते हुवे लोगोके भीडमे
सागरमे बूँदकी तरा,
मगर आपने खोना नही दिया मुझे
आपने तो सम्मानके साथ उचाइमे रखदिया मुझे,
सवसे उपर
और सवसे वढा दिखादिया
इसलिए केहेरहीहुँ
ओ राजधानी तुम मेरे प्रेमी वनगया
ये जमानेमे लोग स्वार्थके बगर
शान्त रहकर,
सेवा करके
जी नही सकता
वो सारेवात तुमनेही तो समझायाथा,
मुझे स्वार्थी बन्ना
हल्ला करके हल्लाके बीचमे रम्ना,
मतलवी और अवसरवादी बन्ना तुमनेही तो सिकाया था,
इसलिए सच केहेरहिहुँ,
ओ राजधानी आप मेरे प्रेमि वनगया
मे तो पेहेले से ही दिख्ती रहतिथी तुझे
आसमानके सितारोको तरा
आप चमकतेथे असमानके सितारोको तरा
आसमानमे रेहेकर
और मे दिख्तिथी आपके जग्मगाते हुए तनको
आपसे मिल्ना
आपके साथ रम्ना
ये सव कल्पनाके वाहरकी वात थी
मगर आया एक एसा बक्त
मे तेरेपास आइ,
मगर,
पेहेलेवार आपको देखकर कित्ना घवरागयीथी मे
दूर से जगमगाते हुए लगने आपका तन
नजदिक आकर देखतेही आपसे घृणा करने लगी थी मे
कित्ना सडाहुवा था आपका तन
वर्षो से साफ सुग्घर नही कियाहुवा आपका तनसे
निकला हुवा वो दुर्गन्ध
तिखे तिखे रुखी अवाज
छिः कित्नावार थुकी थी आपके तनमे
और गाली की थी घृणाभरी शब्दोसे
मगर आपने तो मेरे घृणाको कोही पर्वाह नही किया
मुझसे वेफिकर प्यार किया
इसलिये केहेरहिहुँ
ओ राजधानी तुम मेरे प्रेमी बनगया
मैने सुनी थि
राजधानी विनस्वार्थ जी नही सक्ता
पता नहीँ आपने मुझसे दिया हुवा प्यार
स्वार्थपूर्ण था या नही
जैसे भि हो आपने मुझे प्यार दिया
इसमे ही खुस थी मे
इसलिए आपसे अलग होकर जीना नही चाहती
मगर क्या करुँ धर्तीका लोगो
आसमानमे जीना
प्रकृतिके खिलाफ होसक्ता
इसलिए
वही खुसीया लेकर फिर जारहीहुँ मे ये आसमान से धर्तिपर
अव आपका और मेरा सम्बन्ध फिर
आसमान के सितारो और धर्तीके लोगोकी तरा ही रहेगा
अव तुम जगमगाते रहो अशमान पर
और मे दिखती रहुँगी तुझे हर रात
मेरे धर्तिसे तेरे प्रेमी बनकर।
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